भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह 'दिनकर'
}}
मैत्री की राह बताने को, :सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, :भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
'दो न्याय अगर तो आधा दो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, :रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
दुर्योधन वह भी दे ना सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला, :जो था असाध्य, साधने चला।
जन नाश मनुज पर छाता है,
हरि ने भीषण हुंकार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, :भगवान् कुपित होकर बोले-
'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
यह देख, गगन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, :मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
'उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, :मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
'दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर, :नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।
[[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 2|<< तृतीय सर्ग / भाग 2]] | [[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 4 | अगला तृतीय सर्ग / भाग 4 >>]]
Anonymous user