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{{KKRachna
|रचनाकार=रहीम
|अनुवादक=
|संग्रह=रहीम दोहावली
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जो रहीम भावी या उनमान की, पांडव बनहिं रहीम । <BR/>तदपि गौरि सुनि बांझ, बरू है संभु अजीम ॥ 132 ॥ <BR/><BR/>भलो भयो घर ते छुटयोकतौं, हस्यो सीस परिखेत । <BR/>होति आपुने हाथ।काके काके नवत हमराम न जाते हरिन संग, अपत पेट के हेत ॥ 133 ॥ <BR/><BR/>सीय न रावन साथ॥90॥