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आज सड़कों पर / दुष्यंत कुमार

6 bytes added, 02:30, 5 सितम्बर 2007
The book "साये में धूप" has "घर" instead of "पर"
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,<br>
पर घ्रर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।<br><br>
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,<br>
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