भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मैं और मेरी आवारगी / जावेद अख़्तर का नाम बदलकर मैं और मिरी आवारगी / जावेद अख़्तर कर दिया गया है: spelling
{{KKRachna
|रचनाकार= जावेद अख़्तर
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]<poem>फिरते हैं कब से दरबदर दर-बदर अब इस नगर अब उस नगर<br>एक इक दूसरे के हमसफ़र मैं और मेरी मिरी आवारगीनाआश्ना<brref>अपरीचित</ref>ना आशना हर रहगुज़र ना मेहरबाँ है एक नामेहरबां हर इक नज़र<br>जायें जाएँ तो अब जायें जाएँ किधर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
हम भी कभी आबाद थे ऐसे कहाँ बरबाद थे<br>बिफ़िक्र बेफ़िक्र थे आज़ाद थे मसरूर <ref>प्रसन्न</ref> थे दिलशाद थे<brref>दिल से खुश</ref> थेवो चाल ऐसि ऐसी चल गया हम बुझ गये दिल जल गया<br>निकले जला के जलाके अपना घर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
आसार हैं सब खोट के इमकान<ref>संभावना</ref> हैं सब चोट केघर बंद हैं सब गोट के अब ख़त्म है सब टोटकेक़िस्मत का सब ये फेर है अँधेर ही अँधेर हैऐसे हुए हैं बेअसर मैं और मिरी आवारगी जब हमदम-ओ-हमदमो हमराज़ था तब और ही अन्दाज़ था<br>अब सोज़ <ref>दर्द</ref> है तब साज़ <ref>बाध्य</ref> था अब शर्म है तब नाज़ था<br>अब मुझ से मुझसे हो तो हो भी क्या है साथ वो तो वो भी क्या<br>एक इक बेहुनर एक बेसबर इक बेसमर<ref>निष्फल</ref> मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br/poem>{{KKMeaning}}