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प्रेमकथा-2 / शुभा

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<Poem>
यहाँ प्रतिबद्धता का एक केन्र केन्द्र है
आत्मा का उत्खनन होता है
एक ही ओर दौड़ी जाती हैं इच्छाएँ
अपनी ही छुपी आग से दौड़ा जाता है
दुख और ख़ुशियाँ सब दौड़ती हैं अपनी दरी लपेटे
ज़मीन तोड़कर पानी बह जाता है एक ही इशा दिशा में
उसी दिशा में दौड़ते हैं होशो-हवास
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