भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ और अशआर / फ़ानी बदायूनी

647 bytes added, 10:40, 6 जुलाई 2009
नया पृष्ठ: तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त। ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जा...
तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त।
ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जाविदाँ न था॥

आ गई है तेरे बीमार के मुँह पर रौनक़।
जान क्या जिस्म से निकली, कोई अरमाँ निकला॥

रस्मेख़ुद्दारी से गो वाक़िफ़ न थी दुनिया-ए-इश्क़।
फिर भी अपना ज़ख़्मेदिल शरमिन्द-ए-मरहम न था॥