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छत मुंडेर घर आँगन<br />
ज्योति जगमगाई,<br />
दीवाली आई है, <br />
दीवाली आई।<br />

नील गगन में तारे<br />
धरती पर दीप,<br />
रोशनी की एक बाढ़<br />
आ गई समीप।<br />

ज्योति कलश छलके हैं<br />
निशा फिर नहाई,<br />
दीवाली आई है, <br />
दीवाली आई।<br />

खाखा कर रसगुल्ले<br />
और कलाकंद,<br />
लूट रहे हैं बच्चे<br />
अनुपम आनंद।<br />

दग रहे पटाखे<br />
लो उड़ चली हवाई,<br />
दीवाली आई है, <br />
दीवाली आई<br />

दिख रहा बच्चों में <br />
आज बड़ा मेल<br />
सुंदर खिलौनों से<br />
खूब रहे खेल।<br />

गाँव गाँव, नगर नगर<br />
खुशहाली छाई,<br />
दीवाली आई है, <br />
दीवाली आई<br />

- रामानुज त्रिपाठी