भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पत्थरों की अँगड़ाई
पत्थरों के पंजों में
आहनी९ आहनी<ref>लोहे की<ref>सलाख़ें हैं
और इन सलाख़ों में
सूलियों के साये में
इन्क़िलाब पलता है
तीरगी<ref>अँधेरे</ref>१० के काँटों पर
आफ़ताब चलता है
पत्थरों के सीने से
रात के अँधेरे में
जैसे शम्‌अ़ जलती है
उँगलियाँ फिरोज़ाँ फिरोज़ाँ हैं
बारिकों के कोनों से
साजिशें निकलती हैं
हड्डियाँ शिकस्ता हैं
नौजवान जिस्मों पर
पैरहन११ पैरहन <ref>वस्त्र</ref> हैं ज़ख्मों के
जगमगाते माथों पर
ख़ून की लकीरें हैं