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Kavita Kosh से
बारिकों की तामीरें
अज़दहों <ref>अजगरों </ref>के पैकर<ref>शरीर</ref> हैं
जो नये असीरों<ref>क़ैदियों</ref> को
रात-दिन निगलते हैं
हड्डियाँ शिकस्ता हैं
नौजवान जिस्मों पर
पैरहन <ref>वस्त्र</ref> हैं ज़ख्मों के
जगमगाते माथों पर
ख़ून की लकीरें हैं
‘इन्क़िलाब ज़िन्दाबाद’
ख़ाके-पाक<ref>पवित्र</ref>के बेटे
खेतियों के रखवाले
हाथ कारख़ानों के