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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ ; ज़िंदगी ! ऐ ज़िंदगी ! / फ़राज़
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
क़ुर्बतों<ref>सामीप्य</ref> में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बेमेह्र<ref>निर्दयी</ref> कि रोने के बहाने माँगे
ज़िन्दगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दा
और तू है कि सदा आइनेख़ाने<ref>वह भवन जिसके चारों ओर दर्पण लगे हों</ref>माँगे
दिल किसी हाल पे क़ानेक़ाने<ref>आत्मसंतोषी</ref> ही नहीं जान-ए-"फ़राज़"<br>मिल गये तुम भी तो क्या और न जाने माँगे{{KKMeaning}}<br><br/poem>