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कुछ व्यथित-सी / विष्णु विराट

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कुछ चकित-सी
धूम्रवन से लौट आई  लाल परियां 
चक्रवाती जंगलों की आंधियों से
कांपते-से हिरन के दल थरथराए
 
हार कर सब दाव
लाल परियां
 
राग से और रंग से मुंह मोड़ती-सी
हर लहर में मगरच्छों के बसेरे
 
श्लथ हुए कटिबंध