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Kavita Kosh से
कुछ चकित-सी
धूम्रवन से लौट आई लाल परियां
चक्रवाती जंगलों की आंधियों से
कांपते-से हिरन के दल थरथराए
हार कर सब दाव
लाल परियां
राग से और रंग से मुंह मोड़ती-सी
हर लहर में मगरच्छों के बसेरे
श्लथ हुए कटिबंध
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