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|रचनाकार= अमजद हैदराबादी
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<poem>
तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा,
 
बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो अन्धा हो जा।
 
गाली-गै़बत<ref>पीठ पीछे बुराई करने की आदत</ref> दरोग़गोई<ref>असत्य सम्भाषण</ref> कब तक?
 
‘अमजद’ क्यों बोलता है, गूँगा हो जा॥
 
मत सुन परदेकी बात बहरा हो जा,
 
मत कह इसरोरे-ग़नी<ref>शत्रु का भेद</ref> गूँगा हो जा।
 
वो रूए लतीफ़<ref>सुशील पवित्र नारी का कोमल देह</ref> और यह नापाक नज़र,
 
‘अमजद’ क्यों देखता है अन्धा हो जा॥
 
 
 
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</Poem>
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