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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= आसी ग़ाज़ीपुरी }} <poem>इश्क़ ने फ़रहाद के परदे में पाया इन्तक़ाम।
एक मुद्दत से हमारा ख़ून दामनगीर था॥
आज अराम से सोना मेरी तक़दीर में था॥
</poem>