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<poem>कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से। 
दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥
 
किसी के दरपै ‘आसी’ रात रो-रोके यह कहता था--
 
कि "आखि़र मैं तुम्हारा बन्दा हूँ, तुम बन्दापरवर हो"॥
  ****००००
तुम्हीं सच-सच बता दो कौन था शिरीं की सूरत में।
 
कि मुश्तेख़ाक की हसरत में कोई कोहकन क्यों हो॥
 
 
टुकडे़ होकर जो मिली, कोहकनो-मजनूँ को।
 
कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥
</poem>
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