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<poem>कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से।
दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥
किसी के दरपै ‘आसी’ रात रो-रोके यह कहता था--
कि "आखि़र मैं तुम्हारा बन्दा हूँ, तुम बन्दापरवर हो"॥
तुम्हीं सच-सच बता दो कौन था शिरीं की सूरत में।
कि मुश्तेख़ाक की हसरत में कोई कोहकन क्यों हो॥
टुकडे़ होकर जो मिली, कोहकनो-मजनूँ को।
कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥
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