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Kavita Kosh से
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ।।
न्यूं कहो थे हाळियां हाळियाँ नै सब आराम हो ज्यांगे -
खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।
घणी कमाई होवैगी, थोड़े काम हो ज्यांगे -
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
जमींदार कै पैदा हो-ज्यांज्याँ, दुख विपदा में पड़-ज्यां ज्याँ सैं - उस्सै दिन तैं कई तरहां तरहाँ का रास्सा छिड़-ज्या सै । लगते ही साल पन्द्रहवांपन्द्रहवाँ, हाळी बणना पड़-ज्या सै -
घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।
पौह-माह के महीने में जाडा फूक दे छाती -
पाणी देती हाणां मारां हाणाँ माराँ चादर की गात्ती ।
चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती -
हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।