भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वहाँ दूख नहीं है
वहाँ आनन्द है और बस आनन्द है
मेरे सामने खुला है वार द्वार प्रकाश की दुनिया का
मैं जाती हूँ वहाँ
लेकिन लौट-लौट कर वापिस आती हूँ