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वो अदाए-दिलबरी हो कि नवाए-आशिक़ाना / जिगर मुरादाबादी
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11:23, 25 जुलाई 2009
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मेरे हमसफ़ीर बुलबुल! मेरा-तेरा साथ ही क्या?
मैं ज़मीरे-दश्तोदरिया तू असीरे-आशियाना॥
तुझे ऐ ‘जिगर’! हुआ क्या कि बहुत दिनों से प्यारे।
न बयाने-इश्को़-मस्ती न हदीसे-दिलबराना॥
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चंद्र मौलेश्वर
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