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{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
[[Category: मुक्तक]]
<poem>
जीवन की इस कर्मभूमि में ,
ठीक नहीं है बैठे रहना ।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना ,अपनी कहना ।
सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना ।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना
[21जून,2009 ]
</Poem>
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
[[Category: मुक्तक]]
<poem>
जीवन की इस कर्मभूमि में ,
ठीक नहीं है बैठे रहना ।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना ,अपनी कहना ।
सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना ।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना
[21जून,2009 ]
</Poem>