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06:29, 28 जुलाई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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<poem>
ज़बाँबन्दी से ख़ुश हो, ख़ुश रहो, लेकिन यह सुन रक्खो।
ख़मोशी भी मेरी अफ़साना बन जायेगी महफ़िल में॥
दिल और तूफ़ानेग़म, घबरा के मैं तो मर चुका होता।
मगर इक यह सहारा है कि तुम मौजूद हो दिल में॥
न जाने मौज क्या आई कि जब दरिया से मैं निकला।
तो दरिया भी सिमट कर आ गया आग़ोशे-साहिल में॥
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