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10:48, 29 जुलाई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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<poem>
मैं सुपुर्दे-खुदफ़रामोशी हूँ तू महवे-ख़ुदी।
तेरी हुशयारी से अच्छा है मेरा दीवानापन॥
ग़ाफ़िलों पर गर न हो फ़ितरत को मुर्दों का यक़ीं।
रात को दुनिया पै डाला जाय क्यों काला कफ़न॥
फ़र्श से ता-अर्श मुमकिन है तरक्क़ी-ओ-उरूज।
फिर फ़रिश्ता भी बना लेंगे तुझे, इन्साँ तो बन॥
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