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नब्ज़ धीमी सांस भारी सुस्तियाँ
प्रेम रोगी में कहाँ वो फुर्तियाँ

नाख़ुदा अन्जान साथी हैं डरे
महज़ लहरों के सहारे किश्तियाँ

बिजलियाँ लेतीं यहाँ बलियां कई
डैम बनती जब उजड़ कर बस्तियाँ

कुछ चढ़ावा या इशरा जब हुआ
तब हिलीं थीं दफतरों में नस्तियाँ

पालना परिवार तो बंधन बड़े
बेलगामी की बचें कया गृहस्थियाँ

पंडितों ने तब धरा यजमान को
शोक था घर में पड़ीं थे अस्थियाँ

खटखटाए द्वार ग़म अक्सर तेरा
प्रेम करके क्या रहेंगी मस्तियाँ
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