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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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<poem>

जब तवज्जह तेरी नहीं होती।
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती॥

पहरों रहती थी गुफ़्तगू जिन से।
उनसे अब बात भी नहीं होती॥

उनकी तस्वीर में है क्या ‘सीमाब’!
कि नज़र सैर ही नहीं होती॥

</poem>