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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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दिल और तूफ़ाने-ग़म, घबरा के मैं तो मर चुका होता।
मगर इक यह सहारा है कि तुम मौजूद हो दिल में॥

न जाने मौज क्या आई कि जब दरिया से मैं निकला।
तो दरिया भी सिमट कर आ गया आग़ोशे-साहिल में॥

</poem>