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कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम / बशीर बद्र
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13:08, 2 अगस्त 2009
<poem>
कोई लश्कर है की बढ़ते हुए गम आते है
शाम के साए बहुत तेज कदम आते है
Amitsahuccci
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