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शेख आशिक़्हुसे आशिक़ हुसेन साहब ‘सीमाब’ १८८० ई. में आगरे में जन्मे। अरबी-फ़ारसी की पूर्ण्रूपेण पूर्णरूपेण शिक्षा प्राप्त करने के अतिरिक्त एफ़.ए. तक अंग्रेज़ी भी पढ़ी। शायरी का शौक़ स्वभावतः था। पिता के निधन के कारण आपको १७ वर्ष की उम्र में कालेज छोड़ना पड़ा और आजीविका के लिए कानपुर जाना पड़ा। १८९८ई. में आप मिर्ज़ा दाग के शिष्य हो गए। उस्ताद के निधन के बाद किसी अन्य को संशोधन के लिए कलाम नहीं दिखाया। आप कानपुर, अजमेर, आगरे में पहले नौकरी करते रहे, किन्तु जब उन्हें यह महसूस हुआ कि उनका जन्म साहित्य सृजन के लिए हुआ है तो १९२९ई. में आगरे में स्थाई रूप से रहकर रचना-धर्मिता निभाते रहे। उन्होंने ‘शायर’ मासिक पत्र के प्रकाशन के साथ साथ अनेक उपयोगी ग्रंथ भी लिखे। कारे-अमरोज़, साज़ो-आहंग, कलीमे-अज़्म, सदरुलमिन्तहा, आलमे-आशोब, शेरे-इन्क़लाब, दस्तूरउलइस्लाह, राज़ेउरूज, नफ़ीरेग़म, सरूदेग़म, इलहामे-मंज़ूम आदि उल्लेखनीय हैं। १६ अगस्त १९४८ को भारत छोड़कर वे पाकिस्तान चले गए। बीमारी की हालत में वे कराची छोड़ कर आगरा आना चाहते थे परंतु किस्मत को यह मंज़ूर नहीं था। ३१ जनवरी १९५१ई. को कराची में ही समाधि पाई।