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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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यों तो इस दिल के कदरदान बहुत कम हैं आज
फिर भी लगता है कि आँखें ये तेरी नम हैं आज

दो घड़ी मुँह से लगाकर किसी ने फ़ेंक दिया
एक टूटे हुए प्याले की तरह हम हैं आज

चूक कुछ तो थी हुई राह की पहचान में ही
दूर हम प्यार की मंज़िल से हर क़दम हैं आज

उनसे मिलकर भी तड़पते हैं उनसे मिलने को
पास जितने भी ज़ियादा हैं उतने कम हैं आज

और ही उनकी निगाहों में खिल रहे हैं गुलाब
उनके होंठों पे छिड़े और ही सरगम हैं आज
<poem>
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