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विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता ? 'हमने बचपन साथ बितायेब्याह हुआ संग -संग पति पाये
सीता को ही दुःख दिखलाये
'कोमल चित थे जेठ हमारे
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे!
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे!
कोई तो समझाता !
सिर पर था न अयश का टीका
अब तो छूट रहा भगिनी का
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