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शाम : एक मंज़र / शीन काफ़ निज़ाम
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17:17, 9 अगस्त 2009
<poem>
बिलखती हवाओं के हाथों में
ज़ख़्मखूर्दा
ज़ख़्मखुर्दा
पत्ते
कुहर में
गुमशुदा दैर की गूँजती घंटियाँ
द्विजेन्द्र द्विज
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