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इस सदी को कोई पयम्बर दे|
कहकहों क़हक़हों में गुज़र रही है हयात,
अब किसी दिन उदास भी कर दे|
फिर न कहना के ख़ुदख़ुशी ख़ुदकुशी है गुनाह,
आज फ़ुर्सत है फ़ैसला कर दे|
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