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है वही आरिज़-ए-लैला वही शीरिअन का दहन<br>
वस्ल की शब थी तो किस दर्जा सुबक गुज़री है<br>
हिज्र की शब है तो क्या सख़्त गराँ गुज़री ठहरी है<br><br>
बिखरी एक बार तो हाथ आई कब मौज-ए-शमीम<br>
जाते जाते यूँ ही पल भर को ख़िज़ाँ ठहरी है<br><br>
"फ़ैज़" गुलशन में वो तर्ज़-ए-बयाँ ठहरी है<br><br>