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|रचनाकार=नासिर काज़मी
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[[Category:गज़ल]]
<poem>
किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे
गुज़र गई जरस-ए-गुल उदास कर के मुझे
मैं सो रहा था किसी कली ने भी देखा न आँख भर याद के मुझे <br>शबिस्ताँ में गुज़र गई जरस-ए-गुल उदास कर जगा के छोड़ गये क़ाफ़िले सहर के मुझे <br><br>
मैं सो रो रहा था किसी याद के शबिस्ताँ मुक़द्दर की सख़्त राहों में <br>जगा के छोड़ गये क़ाफ़िले सहर उड़ा के ले गया जादू तेरी नज़र का मुझे <br><br>
मैं रो रहा था मुक़द्दर तेरी दर्द की सख़्त राहों तुग़ियानियों में <br>डूब गया उड़ा पुकारते रहे तारे उभर-उभर के ले गया जादू तेरी नज़र का मुझे <br><br>
मैं तेरी दर्द तेरे फ़िराक़ की तुग़ियानियों में डूब गया <br>रातें कभी न भूलेंगी पुकारते रहे तारे उभर-उभर मज़े मिले इन्हीं रातों में उम्र भर के मुझे <br><br>
तेरे फ़िराक़ की रातें कभी न भूलेंगी <br>ज़रा सी देर ठहरने दे ऐ ग़म-ए-दुनिया मज़े मिले इन्हीं रातों में उम्र भर बुला रहा है कोई बाम से उतर के मुझे <br><br>
ज़रा सी देर ठहरने दे ऐ ग़म-ए-दुनिया <br>बुला रहा है कोई बाम से उतर के मुझे <br><br> फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए-तरब <br>सुना गई है फ़साने इधर-उधर के मुझे <br><br/poem>
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