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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
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'''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्मा|दीपशिखा]] से'''<br><brpoem> यह सपने सुकुमार तुम्हारी स्मित से उजले!<br>कर मेरे सजल दृगों की मधुर कहानी,<br>इनका हर कण हुआ अमर करुणा वरदानी,<br>उडे़ तृणों की बात तारकों से कहने यह<br>चुन प्रभात के गीत, साँझ के रंग सलज ले!<br>लिये छाँह के साथ अश्रु का कुहक सलोना,<br>चले बसाने महाशून्य का कोना कोना,<br>इनकी गति में आज मरण बेसुध बन्दी है,<br>कौन क्षितिज का पाश इन्हें जो बाँध सहज ले।<br>पंथ माँगना इन्हें पाथेय न लेना,<br>उन्नत मूक असीम, मुखर सीमित तल देना,<br>बादल-सा उठ इन्हें उतरना है, जल-कण-सा,<br>नभ विद्युत् के बाण, सजा शूलों को रज ले!<br>जाते अक्षरहीन व्यथा की लेकर पाती,<br>लौटानी है इन्हें स्वर्ग से भू की थाती,<br>यह संचारी दीप, ओट इनको झंझा दे,<br>आगे बढ़, ले प्रलय, भेंट तम आज गरज ले!<br>छायापथ में अंक बिखर जावें इनके जब,<br>फूलों में खिल रूप निखर आवें इनके जब,<br>वर दो तब यह बाँध सकें सीमा से तुमको,<br>मिलन-विरह के निमिष-गुँथी साँसों की स्रज ले!<br><br/poem>
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