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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
}}
'''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्मा|दीपशिखा]] से'''<br><brpoem> तरल मोती से नयन भरे!<br>मानस से ले, उटे स्नेह-घन,<br>कसक-विद्यु पुलकों के हिमकण,<br>सुधि-स्वामी की छाँह पलक की सीपी में उतरे!<br>सित दृग हुए क्षीर लहरी से,<br>तारे मरकत-नील-तरी से,<br>सुखे पुलिनों सी वरुणी से फेनिल फूल झरे!<br>पारद से अनबींधे मोती,<br>साँस इन्हें बिन तार पिरोती,<br>जग के चिर श्रृंगार हुए, जब रजकण में बिखरे!<br>क्षार हुए, दुख में मधु भरने,<br>तपे, प्यास का आतप हरने,<br>इनसे घुल कर धूल भरे सपने उजले निखरे!<br><br/poem>
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