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देवदार / कविता वाचक्नवी

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कब आएँ वे दिन
आकंठ प्रतीक्षा है..........।
 
 
देवदार [नेपाली अनुवाद]
-वैद्यनाथ उपाध्याय
 
रहस्य् का जम्मै देवहारहरु
कटे बटुवाहरूले।
हात फैलाएर
जनु हिम झेल्थे
पीउँथे कुहिरो
छांदथे घाम
धुँवा समेटदथे
देखिंथ्यो घरित्री-सौंदर्यमयी
अब न देवदारी ध्वजा नै छन्‌
आकाशबाट खस्ने बर्फ़ झेल्ने बाहु।
 
आधि काटिएका देवदार का ठुटा
उम्रिएका छन्‌ छाती मा
म दिन गंदछु
देवदार कहिले फेरि उठेर खडा भई
फैलिने छन्‌।
हेरूँ...
कैल्हे आउने हो त्यो दिन
आकंठ प्रतिक्षा छ ....।
</poem>