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Kavita Kosh से
अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
मर चुक कहें कहीं कि तू ग़मे-हिज़्राँ से छूट जायेकहते तो हैं भले की वह वो लेकिन बुरी तरह
ना ताब हिज्र में है ना आराम वस्ल में,
ना जाए वां वाँ बने है ना बिन जाए चैन है,
क्या कीजिए हमें तो है मुश्किल सभी तरह