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[[Category:ग़ज़ल]]
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नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने के हम,
लाख नादाँ हुये क्या तुझ से भी नादाँ होंगे|
एक हम हैं के हुए ऐसे पशेमान के बस,
एक वो हैं के जिन्हें चाह के अरमाँ होंगे| हम निकालेंगे सुन ऐ मौजे-हवा बल तेराउसकी ज़ुल्फ़ों के अगर बाल परेशाँ होंगे मन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा न उठायेंगे कभी, ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे दाग़े-दिल निकलेंगे तुर्बत पे मेरी यूँ लालाये वो अख़गर नहीं जो ख़ाक में पिन्हाँ होंगे चाक-ए-पर्दा से ये ग़म्ज़े हैं तो ऐ पर्दानशींएक मैं क्या कि सभी चाक-गरेबाँ होंगे फिर बहार आई वही दश्त-ए-नवर्दी होगी, फिर वही पाओं वही ख़ार-ए-मुग़ेलाँ होंगे
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन",
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ मुसल्माँ होंगे|
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