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[[Category:ग़ज़ल]]
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नावक अंदाज़ जिधर दीदादफ़्न जब ख़ाक में हम सोख़्ता-ए-जानाँ सामाँ होंगे| नीमफ़ल्स-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ ए-माही के गुल शम्अ-ए-शबिस्ताँ होंगे|
ताबनावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-नज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ, जानाँ होंगे और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ होंगे|
तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले, हम तो कल ख़्वाबताब-ए-अदम में शब-ए-हिजराँ नज़्ज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ, और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे|
फिर बहार आई वही दश्तकरके ज़ख़्मी मुझे नादिम हों ये मुमकिन ही नहींगर वो होंगे भी तो बेवक़्त परेशाँ होंगे  तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले, हम तो कल ख़्वाब-ए-नावर्दी होगी, फिर वही पाओं वही ख़ारअदम में शब-ए-मुग़ेलाँ हिजराँ होंगे|
नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने के हम,
लाख नादाँ हुये क्या तुझ से भी नादाँ होंगे|
एक हम हैं के हुए ऐसे पशेमान के बस,
एक वो हैं के जिन्हें चाह के अरमाँ होंगे|  हम निकालेंगे सुन ऐ मौजे-हवा बल तेराउसकी ज़ुल्फ़ों के अगर बाल परेशाँ होंगे  मन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा न उठायेंगे कभी, ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे दाग़े-दिल निकलेंगे तुर्बत पे मेरी यूँ लालाये वो अख़गर नहीं जो ख़ाक में पिन्हाँ होंगे चाक-ए-पर्दा से ये ग़म्ज़े हैं तो ऐ पर्दानशींएक मैं क्या कि सभी चाक-गरेबाँ होंगे फिर बहार आई वही दश्त-ए-नवर्दी होगी, फिर वही पाओं वही ख़ार-ए-मुग़ेलाँ होंगे
मिन्नतसंग और हाथ वही , वही सर--हज़रतदाग़े-ए-ईसा न उठायेंगे कभी, जुनूँज़िन्दगी के लिये शर्मिंदावही हम होंगे वही दश्त--एहसाँ बयाबाँ होंगे|
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन",
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ मुसल्माँ होंगे|
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