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शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी - त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं
और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है - सरस्वती
 
जो गुप्त है नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है
 
तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है ।
 
१९७२/७३ में जब कमलेश्वर जी सारिका के एडीटर थे तब त्रिवेणियाँ सारिका में छपती रहीं
 
और अब –
त्रिवेणी को बालिग़ होते होते सत्ताईस अट्ठाईस साल लग गए ।
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