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बोस्की के लिए / गुलज़ार

4 bytes added, 16:32, 14 अगस्त 2009
<poem>
कुछ ख़्वाबों के ख़त इन में , कुछ चाँद के आईने ,
 
सूरज की शुआएँ हैं
नज़मों के लिफाफ़ों में कुछ मेरे तजुर्बे हैं,
 
कुछ मेरी दुआएँ हैं
 
निकलोगे सफ़र पर जब यह साथ में रख लेना,
 
शायद कहीं काम आएँ
</poem>
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