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केसरि से बरन सुबरन / बिहारी

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लेखक: [[बिहारी]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:बिहारी]]

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केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ

बरनीं न जाइ अवरन बै गई।

कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं,

उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई।

भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव

चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई।

लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय

जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई।।
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