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लेखक: [[बिहारी]]
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सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै।

मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू ,सु कहयौ कछु ये सुति साँभल ए।

भौर ते साँझि भई न अजौं, घरि भतिर बाहर कौ ढलिए।

रहे गेह की देहरी ठाढ़े दोऊ, उर लागी दुहून चलौ चलिए।।
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