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Kavita Kosh से
|रचनाकार=नोमान शौक़
}}
[[Category:नज़्म]]
<poem>
मैं नहीं चाहता
कोई झरने के संगीत सा
मेरी हर तान सुनता रहे
एक ऊंची पहाड़ी प' बैठा हुआ
सिर को धुनता रहे।
मैं नहीं चाहता<br />अबकोई झरने के संगीत सा<br />मेरी हर तान सुनता रहे<br /> झुंझलाहट का पुर-शोर सैलाब हूँक़स्ब:-व-शहर को एक ऊंची पहाड़ी प' बैठा हुआ<br /> गहरे समुन्दरसिर को धुनता रहे।<br />में ग़र्क़ाब करने के दर पै हूँ।
मैं अब<br /> नहीं चाहताझुंझलाहट का पुर-शोर सैलाब हूँ<br />क़स्ब:-व-शहर मेरी चीख़ को एक गहरे समुन्दर<br /> शायरी जानकरमें ग़र्क़ाब करने क़द्रदानों के दर पै हूँ।<br />मजमे में ताली बजेवाहवाही मिलेऔर मैं अपनी मसनद प' बैठा हुआपान खाता रहूँमुस्कुराता रहूँ।
मैं नहीं चाहता<br />मेरी चीख़ को शायरी जानकर<br />कटे बाज़ुओं से मिरेक़द्रदानों के मजमे में ताली बजे<br />क़तरा क़तरा टपकते हुए वाहवाही मिले<br />सुर्ख़ सैयाल मे कीमिया घोलकरऔर मैं अपनी मसनद प' बैठा हुआ<br />एक ख़ुशरंग पैकर बनाएपान खाता रहूँं<br />रऊनत का मारा मुसव्विर कोईमुस्कुराता रहूँ।<br />और ख़ुदाई का दावा करे।