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|संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज परमार
}}
[[Category:कविता]]
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दिन भर की जी-हुज़ूरी के बाद
किसी शाम घण्टों
ही बहस-मुबाहिसों में
होते हैं शामिल.
 
</poem>
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