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[[Category:ग़ज़ल]]
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शमशीर बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी है
जूड़े की गुंधावत बहर-ए-ख़ुदा ज़ुल्फ़ों की लटक फिर वैसी है
शमशीर बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी हर बात में उस के गर्मी है हर नाज़ में उस के शोख़ी है <br>जूड़े की गुंधावत बहर-ए-ख़ुदा ज़ुल्फ़ों आमद है क़यामत् चाल भरी चलने की लटक फड़क फिर वैसी है <br><br>
हर बात में उस के गर्मी महरम है हर नाज़ में उस के शोख़ी हबाब-ए-आब-ए-रवा सूरज की किरन है <br>उस पे लिपट आमद जाली की ये कुरती है क़यामत् चाल भरी चलने वो बला गोटे की फड़क धनक फिर वैसी है <br><br>
महरम है हबाब-ए-आब-ए-रवा सूरज की किरन है उस पे लिपट <br>जाली की ये कुरती है वो बला गोटे की धनक फिर वैसी है <br><br> वो गाये तो आफ़त लाये है सुर ताल में लेवे जान निकाल <br>
नाच उस का उठाये सौ फ़ितने घुन्घरू की छनक फिर वैसी है
</poem>
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