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पराधीनता को जहां जहाँ समझा श्राप महानकण-कण के खातिर जहां जहाँ हुए कोटि बलिदान
मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान
सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान
::आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने::मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। दूध-दही की नदियां जिसके आंचल आँचल में कलकल करतीं
हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती
हल की नोंकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं
उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊंची ऊँची ध्वजा फहरती ::रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढाना बढ़ाना क्या जाने::मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। आजादी आज़ादी अधिकार सभी का जहां जहाँ बोलते सेनानीविश्व शांति के गीत सुनाती जहां जहाँ चुनरिया ये धानीमेघ सांवले साँवले बरसाते हैं जहां जहाँ अहिंसा का पानी
अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी
::ऐसी भारत मां माँ के बेटे मान गंवाना गँवाना क्या जाने::मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।जहां जहाँ पढाया जाता केवल मां माँ की खातिर ख़ातिर मर जानाजहां जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभानाजियो शान से मरो शान से जहां जहाँ का है कौमी गानाबच्चा-बच्चा पहने रहता जहां जहाँ शहीदों का बाना::उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने::मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। </poeMpoem>