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| रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
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<poem>तुम सारी दुनिया को
कमर से बाँध के नहीं रख सकते

एक तुम्हीं नहीं हो
सारी मर्यादाओ के मेरू

विश्व, जब तुम्हारी इच्छाओं का विकास नहीं है
तो तुम कैसे कर सकते हो
सारी नागफनियों से,
कमल होने की आशा!

तुम खुद बुद्ध बन सकते हो
पर नन्द और सुन्दरी के द्वद्व में
तुम्हारा वैराग्य
धल्ले की चीज़ नहीं
फिर तप की सारी क्रियाएँ
योग की सारी साधनाएँ

मात्र, नाड़ियाँ सुखाने के बहाने हैं
मन,महाभोज से कदापि विरत नहीं होता

औरों के नियम
तुम्हारी डायरी ने नियम नहीं हो सकते

और होती होगी हरियाली
तुम्हारे लिए देखने की चीज़
औरों के लिए,वह
चरने की चीज़ है
</poem>
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