भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
1,443 bytes removed,
08:53, 22 अगस्त 2009
::वही आदमीचलने के लिएसड़कों पर
::हैडलाईटस की तरह
कविताएँ
कविताएँ मुस्कुरा
::पौंछती हैं
उदासी का निःशब्द गहन
पककर फूटे घाव-सा रिसता
:::अन्तरालक्षणों की बंद पलकें
खुलती हैं
ज्यों मुस्काने फूल की:अधमुँदी दुनिया में
कभी-कभी बोलती हैअजनबी स्वरों में
:अँधे गायकों के साथ
कभी बतियाती हैं
::अंतरंग भाषा में
रोज़मर्रा ज़िन्दगी से
अपने न चाहने वालों के सामने
फैंकती है
::तुर्प चालें
और चाहने का ढोंग रचने वालों को
उखाड़ फैंकती है आमूल
गीली मिट्टी से उख़ड़े पौधे की तरह
चाहने वालों को
ले उड़ती हैं
आकाश यात्रा पर
समुद्र मंथन
के बादहलाहल तक पीने के लिए
कविताएँ
मुस्कुराती रहती हैं।
गर्भ मेंपीड़ा का अभिमाम लिये
</poem>