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{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=अलगाव / केशव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>यह भी कितना सुन्दर है
अकेले राह पर होना
अनगिनत मोड़ों में खुलते
आकाश ओढ़क्र सोना
एकाकी राह पर चलते
निरंतर फासला बोना
</poem>
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|रचनाकार=केशव
|संग्रह=अलगाव / केशव
}}
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<poem>यह भी कितना सुन्दर है
अकेले राह पर होना
अनगिनत मोड़ों में खुलते
आकाश ओढ़क्र सोना
एकाकी राह पर चलते
निरंतर फासला बोना
</poem>