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{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=अलगाव / केशव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>धन्य है नाटक के पात्र।
जो करते हैं
होते नहीं
जो होते हैं
करते नहीं
हँसते हैं औरों के लिए
हँस नहीं रहे होते
रोते हैं
तो रो नहीं रहे होते
जीते हैं तो परकाया में
जीव की तरह।
धन्य हैं नाटक के पात्र।
जो सामने-सामने साफ़-साफ़
करते हैं नाटक
अच्छे हैं उनसे
जो हमेशा करते हैं नाटक
बताते नहीं।
</poem>
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<poem>धन्य है नाटक के पात्र।
जो करते हैं
होते नहीं
जो होते हैं
करते नहीं
हँसते हैं औरों के लिए
हँस नहीं रहे होते
रोते हैं
तो रो नहीं रहे होते
जीते हैं तो परकाया में
जीव की तरह।
धन्य हैं नाटक के पात्र।
जो सामने-सामने साफ़-साफ़
करते हैं नाटक
अच्छे हैं उनसे
जो हमेशा करते हैं नाटक
बताते नहीं।
</poem>