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Kavita Kosh से
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<Poem>
कुछ उदास सी चुप्पियाँ
पगलाता रहा मन
लाशें जलती रहीं
अविरूद्ध सासों साँसों में
मन की तहों में
कहीं छिपा दर्द
जिंदगी और मौत का फैसला
टिक जाता है
सुई की नोक नोंक पर
इक घिनौनी साजि़श
रचते हैं अंधेरे
एकाएक समुन्द्र समुन्दर की
इक भटकती लहर
रो उठती है दहाडे़ मारकर