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|रचनाकार=सफ़ी लखनवी
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न ख़ामोश रहना मेरे हम-सफ़ीरो!
जब आवाज़ दूँ तुम भी आवाज़ देना॥
 
ग़ज़ल उसने छेडी़ मुझे साज़ देना।
ज़रा उम्रे-रफ़्ता की आवाज़ देना॥
 
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